|
१) सुरुवात कशी झाली यावर
बऱ्याच घटनांचा शेवट अवलंबून असतो. |
|
|
|
२) आयुष्यात भावनेपेक्षा
कर्तव्य मोठे असते. |
|
|
|
|
|
३) प्रार्थना म्हणजे मनाचं
स्थान |
|
|
|
|
|
|
४) जग प्रेमाने जिंकता
येतं; शत्रुत्वाने नाही. |
|
|
|
|
|
५) यश मिळवायचं असेल तर
स्वत:च स्वत:वर काही बंधन घाला. |
|
|
|
६) प्रत्येकाच्या मनात एक
आदर्श व्यक्ती असलीच पाहिजे. |
|
|
|
|
७) ज्याने स्वत:चं मन
जिंकलं त्याने जग जिंकलं. |
|
|
|
|
|
८) यश मिळवण्यासाठी
सगळ्यात मोठी शक्ती-आत्मविश्वास. |
|
|
|
|
९) प्रतिकूलतेतही अनुकूलता
निर्माण करतो तोच खरा माणूस ! |
|
|
|
|
१०) चुकतो तो माणूस आणि
चुका सुधारतो तो देवमाणूस !
|
|
|
|
|
११) मित्र परिसासारखे
असावेत म्हणजे आयुष्याचं सोनं होतं. |
|
|
|
|
१२) छंद आपल्याला
आयुष्यावर प्रेम करायला शिकवतात. |
|
|
|
|
१३) आपण जे पेरतो तेच
उगवतं. |
|
|
|
|
|
|
१४) फ़ळाची अपेक्षा करुन
सत्कर्म कधीच करु नये. |
|
|
|
|
|
१५) उशीरा दिलेला न्याय हा
न दिलेल्या न्यायासारखा असतो. |
|
|
|
|
१६) शरीराला आकार देणारा
कुंभार म्हणजे व्यायाम. |
|
|
|
|
|
१७) प्रेम सर्वांवर करा पण
श्रध्दा फ़क्त परमेश्वरावरच ठेवा. |
|
|
|
|
१८) आधी विचार करा; मग
कृती करा. |
|
|
|
|
|
|
१९) आयुष्यत आई आणि वडील
यांना कधीच विसरु नका, |
|
|
|
|
२०) फ़क्त स्वत:साठी जगलास
तर मेलास आणि स्वत:साठी |
|
|
|
|
जगून दुसऱ्यांसाठी जगलास तर जगलास !
|
|
|
|
|
|
२१) एकमेकांची प्रगती
साधते ती खरी मैत्री. |
|
|
|
|
|
२२) अतिथी देवो भव ॥ |
|
|
|
|
|
|
|
२३) अपयशाने खचू नका; अधिक
जिद्दी व्हा. |
|
|
|
|
|
२४) दु:ख कवटाळत बसू नका;
ते विसरा आणि सदैव हसत रहा. |
|
|
|
२५) आपल्यामुळे दुसऱ्याला
दु:ख होईल असे कधीही वागू नका. |
|
|
|
|
२६) निघून गेलेला क्षण
कधीच परत आणता येत नाही. |
|
|
|
|
२७) खऱ्या विद्यार्थ्याला
कधीच सुट्टी नसते. सुट्टी ही त्याच्यासाठी नवं |
|
|
|
काहीतरी शिकण्याची संधी असते. |
|
|
|
|
|
|
२८) उद्याचं काम आज करा
आणि आजचं काम आत्ताच करा. |
|
|
|
२९) चुकीचा व्यवहार माणसं
तोडतो म्हणून तो सत्याने आणि |
|
|
|
|
सन्मानाने करा. |
|
|
|
|
|
|
|
|
३०) नवं काहीतरी
शिकण्यासाठी मिळालेला वेळ म्हणजे सुट्टी.
|
|
|
|
|
३१) माणसाची चौथी मूलभूत
गरज म्हण्जे पुस्तक. |
|
|
|
|
|
३२) सत्याने मिळतं तेच
टिकतं. |
|
|
|
|
|
|
३३) जो दुसऱ्यांना देतो
त्याला देव देतो. |
|
|
|
|
|
|
३४) परमेश्वराच्या
आशीर्वादाशिवाय कुठलेही कार्य सिध्दीस जात नाही. |
|
|
|
३५) हिंसा हे जगातलं
सगळ्यात मोठं पाप आहे; मग ती एखाद्या |
|
|
|
माणसाची असो वा पशुची ! |
|
|
|
|
|
|
३६) स्वप्न आणि सत्य यात
साक्षात परमेश्वर उभा असतो. |
|
|
|
|
३७) प्राप्तीपेक्षा
प्रयत्नांचा आनंद अधिक असतो. |
|
|
|
|
|
३८) खरी श्रीमंती शरीराची,
बुध्दीची आणि मनाची |
|
|
|
|
|
३९) तडजोड हे आयुष्याचं
दुसरं नाव आहे. |
|
|
|
|
|
|
४०) वाहतो तो झरा आणि
थांबते ते डबकं ! डबक्यावर डास येतात |
|
|
|
आणि झऱ्यावर राजहंस !!
|
|
|
|
|
|
|
|
४१) जो गुरुला वंदन करत
नाही; त्याला आभाळाची उंची लाभत नाही. |
|
|
|
४२) गर्वाचं घर नेहमीच
खाली असतं. |
|
|
|
|
|
|
४३) झाडावर प्रेम करणारा
माणूस सदैव प्रसन्नच असतो. |
|
|
|
|
४४) माणसाचा सगळ्यात मोठा
सदगुण म्हणजे त्याची माणुसकी |
|
|
|
४५) क्रांती हळूहळू घडते;
एका क्षणात नाही. |
|
|
|
|
|
४६) सहल म्हणजे माणसिक
आनंदाची सामुहिक क्रिडा |
|
|
|
|
४७) मुक्या प्राण्यांवर
सदैव प्रेम करा. |
|
|
|
|
|
|
४८) आयुष्याच्या प्रवासात
प्रवास अत्यावश्यक आहे. |
|
|
|
|
|
४९) बाह्यसौंदर्यापेक्षा
अंतर्गत सौंदर्य जास्त मोलाचं असतं. |
|
|
|
|
५०) मनाची श्रीमंती ही
कुठल्याही श्रीमंतीपेक्षा मोठी असते.
|
|
|
|
|
५१) तुम्ही आयुष्यात किती
माणसे जोडली यावरुन तुमची श्रीमंती कळते. |
|
|
|
५२) शिक्षक म्हणजे
विद्यार्थ्याचा दुसरा पालकच. |
|
|
|
|
|
५३) मनाचे दरवाजे नेहमी
खुले ठेवा; ज्ञानाचा प्रकाश कुठुन कधी येईल |
|
|
|
सांगता येत नाही. |
|
|
|
|
|
|
|
५४) आपल्याला मदत करणाऱ्या
माणसांशी नेहमी कृतज्ञ रहा. |
|
|
|
|
५५) एखाद्याला गुन्हेगार
ठरविताना त्याच्या जागी स्वत:ला ठेवून बघा. |
|
|
|
५६) परीक्षा म्हणजे
स्वत:च्या आत डोकावून पाहण्याची संधी ! |
|
|
|
|
५७) खिडकी म्हणजे आकाश
नसतं. |
|
|
|
|
|
|
५८) जगण्यात मौज आहेच पण
त्याहून अधिक मौज फ़ुलण्यात आहे |
|
|
|
५९) वाचन, मनन आणि लेखन
म्हणजे अध्ययन. |
|
|
|
|
|
६०) भाकरी आपल्याला जगवते
आणि गुलाबाचं फ़ूल कशासाठी |
|
|
|
जगायचं हे शिकवते.
|
|
|
|
|
|
|
|
६१) कविता म्हणजे भावनांचं
चित्र! |
|
|
|
|
|
|
६२) संभ्रमाच्या वेळी
नेहमी आपल्या कर्तव्याला प्राधान्य द्या. |
|
|
|
|
६३) तुम्ही जेवढं इतरांना
द्याल तेवढंच, किंबहुना त्याच्या कित्येक |
|
|
|
पटीने देव तुम्हाला देईल. |
|
|
|
|
|
|
|
६४) ज्याच्यामधे मानवता
आहे तोच खरा मानव ! |
|
|
|
|
|
६५) स्वत:च्या
स्वार्थासाठी दुसऱ्याचा वापर कधी करु नका; आणि |
|
|
|
स्वत:चा वापर कुणाला करु देऊ नका. |
|
|
|
|
|
६६) अनुभवासारखा दुसरा
गुरू नाही. |
|
|
|
|
|
|
६७) तुलना करावी पण
अवहेलना करू नये. |
|
|
|
|
|
६८) समाधानी राहण्यातच
आयुष्यातलं सगळ्यात मोठं सुख आहे. |
|
|
|
६९) आयुष्यातल्या
कोणत्याही क्षणी क्रोधाचे गुलाम बनू नका. |
|
|
|
|
७०) मनात आणलं तर या जगात
अश्यक्य असं काहीच नाही.
|
|
|
|
|
७१) चेहरा हा आपल्या
व्यक्तीमत्त्वाचा आरसा असतो. |
|
|
|
|
७२) व्यर्थ गोंष्टींची
कारणे शोधू नका; आहे तो परिणाम स्वीकारा. |
|
|
|
७३) आवडतं तेच करू नका; जे
करावं लागतं त्यात आवड निर्माण करा. |
|
|
|
७४) तुम्ही किती जगलात
ह्यापेक्षा कसं जगलात याला जास्त |
|
|
|
|
महत्त्व आहे. |
|
|
|
|
|
|
|
|
७५) अश्रु येणं हे माणसाला
ह्रदय असल्याचं द्योतक आहे. |
|
|
|
|
७६) विचारवंत होण्यापेक्षा
आचारवंत व्हा. |
|
|
|
|
|
|
७७) मरण हे अपरिहार्य आहे
त्याला भिऊ नका. |
|
|
|
|
|
७८) आयुष्यात प्रेम कारा ;
पण प्रेमाचं प्रदर्शन करू नका. |
|
|
|
|
७९) आयुष्यात कुठलीच नाती
ठरवून जोडता येत नाही. |
|
|
|
|
८० प्रायश्चित्तासारखी
दूसरी शिक्षा नाही.
|
|
|
|
|
|
|
८१) तुम्ही जिथे जाल तिथे
तुमची गरज निर्माण करा. |
|
|
|
|
८२) सगळेच निर्णय मनाने
घेऊ नका; काही निर्णय बुध्दीलाही घेऊ द्या. |
|
|
|
८३) काळ्याकुट्ट
रात्रीनंतर सुर्य उगवतोचं. |
|
|
|
|
|
|
८४) लखलखते तारे
पाहण्यासाठी आपल्याला अंधारातच राहवं लागतं. |
|
|
|
८५) चांगली कविता माणसाला
संवेदनाक्षम बनवते. |
|
|
|
|
|
८६) तुमची उक्ती आणि कृती
यात भेद ठेवू नका. |
|
|
|
|
|
८७) भुतकाळ आपल्याला
आठवणींचा आनंद देतो; भविष्यकाळ आपल्याला |
|
|
|
स्वप्नांचा आनंद देतो पण आयुष्याचा आनंद फ़क्त
वर्तमानकाळच देतो. |
|
|
|
८८) चांगला माणूस घडवणे
हेच शिक्षणाचे खरे ध्येय आहे. |
|
|
|
|
८९) आयुष्यात सर्वात जास्त
विश्वास परमेश्वरावर ठेवा. |
|
|
|
|
९०) उलटा केलेला पिरॅमिड
कधीच उभा राहू शकत नाही.
|
|
|
|
|
९१) पोहरा झुकल्याशिवाय
विहिरीतलं पाणी पोहऱ्यात जात नाही. |
|
|
|
९२) अत्तर सुगंधी व्हायला
फ़ुले सुगंधी असावी लागतात. |
|
|
|
|
९३) मित्राच्या
मृत्यूपेक्षा मैत्रीचा मृत्यू अधिक दुःखदायक असतो. |
|
|
|
९४) रागाला जिकंण्याचा
एकमेव उपाय - मौन ! |
|
|
|
|
|
९५) अती अशा हे दुःखाचं
मूळ कारण आहे. |
|
|
|
|
|
९६) अंथरूण बघून पाय
पसरा. |
|
|
|
|
|
|
|
९७) कधी कधी हक्क मागून
मिळत नाहीत; ते मिळवावे लागतात. |
|
|
|
९८) तुम्हाला ज्या विषयाची
माहिती आहे त्याविषयी कमी बोला, आणि |
|
|
|
ज्या विषयाची माहिती नाही त्या विषयी मौन
पाळा. |
|
|
|
|
९९) अतिशहाणा त्याचा बैल
रिकामा. |
|
|
|
|
|
|
१००) संकटं तुमच्यातली
शक्ती, जिद्द पाहण्यासाठीच येत आसताच.
|
|
|
|
१०१) सन्मित्र
शिंपल्यातल्या मोत्यासारखे असतात. |
|
|
|
|
|
१०२) सौंदर्य हे वस्तूत
नसते; पाहणाऱ्याच्या दृष्टीत असते. |
|
|
|
|
१०३) शरीरमाध्यम खलु
सर्वसाधनम ॥ |
|
|
|
|
|
|
१०४) सर्वच प्रश्न सोडवून
सूटत नाहीत; काही सोडून दिले की |
|
|
|
|
आपोआप सुटतात. |
|
|
|
|
|
|
|
१०५) विद्या विनयेन शोभते
॥ |
|
|
|
|
|
|
१०६) शीलाशिवाय विद्या
फ़ुकाची आहे. |
|
|
|
|
|
|
१०७) जगाशी प्रामाणिक
राहण्यापेक्षा आधी स्वतःशी प्रामाणिक रहा. |
|
|
|
१०८) एकदा तुटलेलं पान
झाडाला परत कधीच जोडता येत नाही. |
|
|
|
१०९) कामात आनंद निर्माण
केला की त्याचं ओझं वाटत नाही. |
|
|
|
११०) आयुष्यात खरं प्रेम,
खरी माया फ़ार दूर्मिळ असते.
|
|
|
|
|
१११) ज्या चांगल्या बाबी
आपण निर्माण केल्या नाहीत त्या नष्ट |
|
|
|
करण्याचा आधिकार आपल्याला नाही. |
|
|
|
|
|
११२) कुणीही चोरू शकत नाही
अशी संपत्ती कमावण्याचा प्रयत्न करा. |
|
|
|
११३) देणाऱ्याने देत जावे,
घेणाऱ्याने घेत जावे घेता घेता एक दिवस, |
|
|
|
देणाऱ्याचे हात घ्यावे ! |
|
|
|
|
|
|
|
११४) आयुष्यात सगळ्याच
गोष्टी आपल्याला जमतील असं नाही. |
|
|
|
११५) मूर्खांना विवेक
सागंणे हाही मूर्खपणाच ! |
|
|
|
|
|
११६) ज्या गोष्टींशी आपला
काहीही संबंध नाही त्यात नाक खुपसले |
|
|
|
की तोटाच होतो. |
|
|
|
|
|
|
|
११७) जे झालं त्याचा विचार
करू नका; जे होणार आहे त्याचा विचार करा. |
|
|
|
११८) आपल्याला जे आवडतात
त्यांच्यावर प्रेम करण्यापेक्षा ज्यानां |
|
|
|
आपण आवडतो त्यांच्यावर प्रेम करा. |
|
|
|
|
|
११९) रामप्रहरी जागा होतो
त्यालाच प्रहरातला राम भेटतो. |
|
|
|
|
१२०) जे आपले आहेत
त्यांच्यावर कुणीही प्रेम करतं; पण जे आपले |
|
|
|
नाहीत त्यांच्यावर प्रेम करणं हेच खरं
प्रेम !
|
|
|
|
|
|
१२१) लक्षात ठेवा-आयुष्यात
कुठलीच गोष्ट कायमची आपली नसते. |
|
|
|
१२२) कधी कधी आपण
ज्यांच्यावर खूप प्रेम करतो तीच माणसं |
|
|
|
आपल्यापासून फार दूर जातात. |
|
|
|
|
|
|
१२३) जे आपले नाही
त्याच्यावर कधीच हक्क सांगू नका. |
|
|
|
|
१२४) पुढचा आपल्याशी
चांगला वागेल या अपेक्षेने त्याच्याशी चांगलं |
|
|
|
वागू नका. |
|
|
|
|
|
|
|
|
१२५) आयुष्यात भेटणारी
सगळीच माणसे सारखी नसतात. |
|
|
|
|
१२६) गुणांचं कौतुक उशीरा
होतं; पण होतं ! |
|
|
|
|
|
१२७) कुठल्याही कामाला
अंतःकरणाचा उमाळा लागतो. |
|
|
|
|
१२८) स्वतःचा अवगुण शोधणं
हीच गुणांची पूर्तता ! |
|
|
|
|
|
१२९) ज्यादिवशी आपली
थोडीही प्रगती झाली नाही तो दिवस फुकट |
|
|
|
गेला अस समजा. |
|
|
|
|
|
|
|
१३०) जो स्वतःवर प्रेम करू
शकत नाही तो जगावर काय प्रेम करणार !
|
|
|
|
१३१) सृजनातला आनंद
कल्पनेच्या पलीकडचा असतो. |
|
|
|
|
१३२) श्रध्दा असली की
सृष्टीतल्या प्रत्येक गोष्टीत देव दिसतो. |
|
|
|
१३३) आनंदी मन, सुदृढ शरीर
आणि अध्यात्मिक श्रध्दा ह्या तिनही |
|
|
|
गोष्टी लाभणं म्हणजे अमृत मिळणं. |
|
|
|
|
|
१३४) एकांतात मिळणाऱ्या
क्षणांचं आपण काय करतो यावर आयुष्याकडे |
|
|
|
पाहाण्याचा आपला दृष्टीकोन व्यक़्त
होतो. |
|
|
|
|
|
१३५) प्रेमाला आणि
द्वेषालाही प्रेमानेच जिंका. |
|
|
|
|
|
१३६) आपण चुकतो तिथे
सावरतो तोच खरा मित्र ! |
|
|
|
|
|
१३७) आपला जन्म होतो
तेव्हा आपण रडत असतो आणि लोक हसत |
|
|
|
असतात. मरताना आपण असं मरावं की आपण हसत
असू आणि |
|
|
|
लोक रडत असतील ! |
|
|
|
|
|
|
|
१३८) स्वतःची चूक स्वतःला
कळली की बरेच अनर्थ टळतात. |
|
|
|
|
१३९) अश्रुंनीच ह्र्दये
कळतात आणि जुळतात. |
|
|
|
|
|
१४०) हक्क आणि कर्तव्य या
एकाच नाण्याच्या दोन बाजू आहेत.
|
|
|
|
१४१) आयुष्यात असं काहीतरी
मिळवा जे तुमच्या पासून कुणीही चोरून |
|
|
|
घेऊ शकत नाही. |
|
|
|
|
|
|
|
१४२) बदलण्याची संधी नेहमी
असते पण बदलण्यासाठी तूम्ही |
|
|
|
|
वेळ काढला का ? |
|
|
|
|
|
|
|
१४३) कलेशिवाय जीवन म्हणजे
सुगंधाशिवाय फूल आणि |
|
|
|
|
प्राणाशिवाय शरीर ! |
|
|
|
|
|
|
|
१४४) टाकीचे घाव
सोसल्याशिवाय देवपण मिळत नाही. |
|
|
|
|
१४५) नेहमी तत्पर रहा;
बेसावध आयुष्य जगू नका. |
|
|
|
|
|
१४६) यश न मिळणे याचा अर्थ
अपयशी होणे असा नाही. |
|
|
|
|
१४७) आयुष्यात खूपदा
बुध्दी जिंकते; ह्रदय हरतं पण बुध्दी जिंकूनही |
|
|
|
हरलेली असते आणि ह्रदय हरूनदेखील जिंकलेलं
असतं. |
|
|
|
|
१४८) खरं आणि खोटं यात
केवळ चार बोटांचं अंतर आहे. आपण कानांनी |
|
|
|
ऎकतो ते खोटं आणि डोळ्यांनी पाहतो ते
खरं. |
|
|
|
|
|
१४९) जगी सर्व सुखी असा
कोन आहे; विचारी मना तुच शोधूनी पाहे. |
|
|
|
१५०) प्रत्येक बाबतीत
दुसऱ्याच अनुकरण करु नका; स्वतःची वेगळी |
|
|
|
ओळख निर्माण करा.
|
|
|
|
|
|
|
|
१५१) स्वातंत्र्य म्हणजे
संयम; स्वैराचार नव्हे. |
|
|
|
|
|
१५२) आयुष्यातला खरा आंनद
भावनेच्या ओलाव्यात असतो. |
|
|
|
|
१५३) माणसाने आपल्या
आयुष्यात सुख-दुःख मानापमान, स्फूर्ती-निंदा, |
|
|
|
लाभ हानी, प्रिय-अप्रिय ह्या गोष्टी समान
समजाव्यात. |
|
|
|
|
१५४) जीवनातील प्रत्येक
क्षणी शिकणं म्हणजे शिक्षण. |
|
|
|
|
१५५) तन्मयता नसेल तर;
विद्वत्ता व्यर्थ आहे. |
|
|
|
|
|
१५६) शिक्षण हे साधन आहे;
साध्य नव्हे. |
|
|
|
|
|
|
१५७) हसा, खेळा पण शिस्त
पाळा. |
|
|
|
|
|
|
१५८) आयुष्यात काय गमावलंत
ह्यापेक्षा काय कमावलंत ह्याचा विचार करा. |
|
|
|
१५९) स्वतः जगा आणि
दुसऱ्यालाही जगू द्या. |
|
|
|
|
|
१६०) तूच आहेस तूझ्या
जीवनाचा शिल्पकार !
|
|
|
|
|
|
१६१) काळ्याकुट्ट
रात्रीनंतर उद्याची लख्ख पहाट असतेच. |
|
|
|
|
१६२) काळजाची प्रत्येक जखम
भरून येते कारण काळ दुःखावर मायेची |
|
|
|
फुंकर घालत असतो. |
|
|
|
|
|
|
|
१६३) एक साधा विचारसुध्दा
तुमचं आयुष्य उजळवू शकतो म्हणून नेहमी |
|
|
|
नवे विचार मिळवत रहा. |
|
|
|
|
|
|
|
१६४) हे देवा, मला खूप खूप
आव्हानं दे व ती पेलण्यासाठी प्रचंड शक्ती दे ! |
|
|
|
१६५) उगवणारा प्रत्येक
दिवस उमलणारा हवा. |
|
|
|
|
|
१६६) या जन्मावर, या
जगण्यावर शतदा प्रेम करावे. |
|
|
|
|
|
१६७) तुम्हाला मोठेपणी
कोणं व्हायचंय ते आजच ठरवा....आत्ताच ! |
|
|
|
१६८) केल्याने होत आहे रे
आधी केलेची पाहीजे. |
|
|
|
|
|
१६९) दुसऱ्यांच्या गुणाचं
कौतुक करायलाही मन मोठं लागतं. |
|
|
|
|
१७०) माणूस म्हणजे गुण व
दोष यांचे मिश्रण आहे.
|
|
|
|
|
|
१७१) प्रत्येक क्षण
अपल्याला काही ना काही शिकवत असतो. |
|
|
|
|
१७२) व्यायामामुळे बुध्दी
आणि मन दोहोंचे सामर्थ्य प्रभावी होते. |
|
|
|
१७३) काट्याविना गुलाबाचा
कोमलपणा व्यर्थ असतो. |
|
|
|
|
१७४) दुःख हे कधीच
दागिन्यासारखं मिरवू नका; वाटू शकलात तर आपला आनंद वाटा. |
|
|
१७५) शक्तीचा उपयोग नेहमी
शहाणपणाने करा. क्रोधाच्या मार्गाने ती वाया घालवू नका. |
|
|
१७६) जग भित्र्याला
घाबरवते आणि घाबरवणाऱ्याला घाबरते. |
|
|
|
|
१७७) दुःख हे बैलालासुध्दा
कोकिळेसारखं गायला लावतं. |
|
|
|
|
१७८) शिकणाऱ्याला शिकवावं
लागत नाही; तो स्वतःहून शिकतो. |
|
|
|
१७९) जग हे कायद्याच्या
भीतीने चालत नाही ते सद्विचाराने चालते. |
|
|
|
१८०) परिस्थितिला शरण न
जाता परिस्थितीवर मात करा.
|
|
|
|
|
१८१) ऎकावे जनाचे करावे
मनाचे. |
|
|
|
|
|
|
१८२) एका वेळी एकच काम आणि
तेही एकाग्रतेने करा. |
|
|
|
|
१८३) केवळ ज्ञान असून
उपयोग नाही, ते कसं आणि केव्हा वापरायचं याचंही ज्ञान हवं. |
|
|
१८४) बाह्यशत्रूपेक्षा
बऱ्याच वेळी अंतःशत्रूचीच अधीक भीती असते. |
|
|
|
१८५) चिंता ही कुठल्याच
दुःखावरचा उपाय होऊ शकत नाही. |
|
|
|
|
१८६) तलवारीच्या जोरावर
मिळवलेलं राज्य तलवार असेतोवरच टिकतं. |
|
|
|
१८७) दुःखातील दुःखिताला
सुख म्हणजे त्याच्या दुःखातला सहभाग होय. |
|
|
|
१८८) स्वातंत्र्य हा आपला
जन्मसिध्द हक्क आहे पण त्याचा स्वैराचार होऊ न देणं |
|
|
हे आपलं आद्यकर्तव्य आहे. |
|
|
|
|
|
|
१८९) स्वतःला पुर्ण ज्ञानी
समजणाऱ्याचा विकास खुंटला. |
|
|
|
|
१९०) त्रासाशिवाय विद्या
मिळणे अशक्य आहे. नव्हे, त्रास कसा सहन करायचा हे |
|
|
शिकणे हीच विद्या !
|
|
|
|
|
|
|
|
१९१) जगू शकलात तर
चंदनासारखे जगा; स्वत: झीजा आणि इतरांना गंध द्या |
|
|
१९२) दुबळी माणसे रडगाणी
सांगण्यासाठीच जन्माला आलेली असतात. |
|
|
|
१९३) पाप ही अशी गोष्ट आहे
जी लपवली की वाढत जाते. |
|
|
|
|
१९४) उद्याचा भविष्यकाळ
वर्तमानाच्या त्यागातून निर्माण होत असतो. |
|
|
|
१९५) जो चांगल्या वॄक्षाचा
आधार घेतो त्याला चांगलीच सावली लाभते. |
|
|
|
१९६) मरावे परी कीर्तीरूपे
उरावे. |
|
|
|
|
|
|
१९७) आयुष्य जगून समजते;
केवळ ऎकून , वाचून , बघून समजत नाही. |
|
|
|
१९८) मूर्ख माणसे आपापसात
संभाषण करू लागली की शहाण्या माणसाने मौन |
|
|
धारण करणे योग्य. |
|
|
|
|
|
|
|
१९९) बचत म्हणजे काय आणि
ती कशी करावी हे मधमाश्यांकडून शिकावं. |
|
|
|
२००) तारूण्य म्हणजे
जीवनाचा रचनाकाळ आहे.
|
|
|
|
|
|
२०१) गरिबी असूनही
दान करतो तो ख्ररा दानशूर. |
|
|
|
|
|
२०२) स्वार्थरहीत आणि
खरीखुरी सेवा हीच खरी प्रार्थना. |
|
|
|
|
२०३) प्रार्थना म्हणजे
ईश्वराच्या जवळ जाण्याची शक्ती. |
|
|
|
|
२०४) आपले सौख्य हे आपल्या
विचारांवर अवलंबून असते. |
|
|
|
|
२०५) जे घाईघाईने वर चढू
पाहतात ते कोसळतात. |
|
|
|
|
|
२०६) सदगुणांना कधीच
वार्धक्य येत नाही. |
|
|
|
|
|
२०७) उषःकाल कितीही चांगला
असला तरी सूर्याला तिथे फार काळ थांबता येत नसतं. |
|
|
२०८) लज्जा हा सौंदर्याचा
अलंकार आहे. |
|
|
|
|
|
|
२०९) मोहाचा पहिला क्षण,
ही पापाची पहिली पायरी असते. |
|
|
|
|
२१०) जीवन नेहमीच अपूर्ण
असते आणि ते अपूर्व असण्यातच त्याची गोडी |
|
|
|
साठवलेली असते.
|
|
|
|
|
|
|
|
२११) सत्याला शपथांच्या
टेकूची गरज नसते. |
|
|
|
|
|
२१२) जगात सारी सोंगे करता
येतात, पण पैशाच सोंग करता येत नाही. |
|
|
|
२१३) संकटं टाळणं
माणसाच्या हाती नसतं पण संकटाचा सामना करणं त्याच्या |
|
|
हातात असतं. |
|
|
|
|
|
|
|
|
२१४) जूनी खपली काढून
बुजलेल्या जखमा ताज्या करण्यात शहाणपणा नसतो. |
|
|
२१५) सौंदर्य, सुस्वभाव
यांची बेरीज करा, मैत्रीतून मत्सर वजा करा, प्रेमाला शुध्द |
|
|
अंतःकरणाने गुणा, परमनिंदेचा लघुत्तम काढा,
सुविचारांचा वर्ग करा, दया, क्षमा, शांती, |
|
|
परमार्थ यांचे समीकरण सोडवा... हेच आपल्या
सुखी आयुष्याचे गणित आहे. |
|
|
२१६) क्रांती तलवारीने घडत
नाही; तत्वाने घडते. |
|
|
|
|
|
२१७) जो गुरू असेल, तो
शिष्य असेलच. जो शिष्य नसेल, तो गुरू नसेल. |
|
|
|
२१८) जीवन हा एक पाण्याचा
प्रवाह आहे, समुद्र गाठायचा असेल, तर खाचखळगे पार |
|
|
करावेच लागतील. |
|
|
|
|
|
|
|
२१९) जीवन ही एक जबाबदारी
आहे. क्षणाक्षणाला दुसऱ्याला सांभाळत न्यावं लागतं. |
|
|
२२०) वैभव त्यागात असते,
संचयात नाही.
|
|
|
|
|
|
|
२२१) तुम्हाला सज्जन
व्हावेसे वाटत असेल तर आधी तुम्ही वाईट आहात यावर |
|
|
विश्वास ठेवा. |
|
|
|
|
|
|
|
|
२२२) खोटी टीका करू नका,
नाहीतर प्रतिटीका ऎकावी लागेल. |
|
|
|
|
२२३) मनाविरूध्द गोष्ट,
म्हणजे ह्रदयस्थ परमेश्वराविरूध्द. |
|
|
|
|
२२४) पुस्तकांसारखा दुसरा
मित्र नाही. आपले अंतरंग खुले करते. कधी चुकवत नाही |
|
|
की फसवत नाही. |
|
|
|
|
|
|
|
२२५) ह्रदयात अपार प्रेम
असंल की सर्वत्र मित्र |
|
|
|
|
|
२२६) टीका करणाऱ्या
शत्रुंपेक्षा दिखाऊ स्तुती करणाऱ्या मित्रांपासून सावध रहा. |
|
|
२२७) प्रसंगी थोडे नुकसान
झाले तरी चालेल, पण शत्रू निर्माण करू नका. |
|
|
|
२२८) मनाला आंनद देण्याचा
कोणत्याही पदार्थाचा गुण म्हणजेच सौंदर्य. |
|
|
|
२२९) भव्य विचार हा
सुगंधासारखा असतो; तो पसरावावा लागत नाही; आपोआप पसरतो. |
|
|
२३०) वाईट गोष्टींशी
असहकार दाखवणे हे मानवाचे आद्य कर्तव्य आहे.
|
|
|
|
२३१) त्याज्य वस्तू फूकट
मिळाली तरी स्वीकारू नये. |
|
|
|
|
२३२) शत्रूशीही प्रेमाने
वागून त्याला जिंकता येते; पण त्यासाठी संयम असावा लागतो. |
|
|
२३३) कृतघ्नतेसारखे दुसरे
पाप नाही. |
|
|
|
|
|
|
२३४) बनू शकलात तर कृतज्ञ
बना, कृतघ्न नको. |
|
|
|
|
|
१३५) दुसऱ्याचे अनूभव
जाणून घेणे हाही एक अनुभवच आसतो. |
|
|
|
२३६) ओरडण्याने ओरडणे बंद
होत नाही; स्वस्थ राहण्याने मात्र होते. |
|
|
|
२३७) दुःख गरूडाच्या
पावलाने येतं आणि मुगींच्या पावलांनी जातं. |
|
|
|
२३८) जीवन जगण्याची कला
हीच सर्व कलांमध्ये श्रेष्ठ कला आहे. |
|
|
|
२३९) एकमेका साहय्य करू ।
अवघे धरू सुपंथ ॥ |
|
|
|
|
|
२४०) सुख हे दुःखाचे मोल
देऊनच मिळते.
|
|
|
|
|
|
२४१) श्रीमंताचे बंगले
चांगले असतात पण म्हणून कोणी आपल्या झोपड्या पाडत नाही. |
|
|
२४२) राष्ट्र निर्माण
करायचे असेल तर आधी राष्ट्रनिष्ठा निर्माण करायला हवी. |
|
|
२४३) संयम राखणे हा
आयुष्यातला फार मोठा गुण आहे. |
|
|
|
|
२४४) असंभवनीय गोष्टी कधीच
खऱ्या मानू नयेत. |
|
|
|
|
|
२४५) उषःकालाकडे जाण्याचा
एकमेव मार्ग आहे, तो म्हणजे रात्र. |
|
|
|
२४६) ज्या गोष्टी कधीच
बदलू शकत नाहीत त्यांच्याविषयी कधीही दुःखी होऊ नये. |
|
|
२४७) जे दुसऱ्याचे
स्वातंत्र्य हिरावून घेतात, त्यांना स्वातंत्र्यात राहण्याचा हक्क नही. |
|
|
२४८) पुस्तकाइतका प्रांजळ
आणि निष्कपटी मित्र दुसरा मिळणार नाही. |
|
|
|
२४९) मनाला आंनद, संस्कार
देणारी प्रत्येक वस्तू व कृती कलापूर्ण आहे. |
|
|
|
२५०) दोष लपवला की तो मोठा
होतो आणि कबूल केला की नाहीसा होतो.
|
|
|
|
२५१) आकाशाखाली
झोपणाऱ्याला कोण लुटणार ? |
|
|
|
|
|
२५२) जखम करणारा विसरतो पण
जखम ज्याला झाली तो विसरत नाही. |
|
|
|
२५३) पिंजऱ्यात कोंडून
पाखरं कधीच आपली होत नाहीत. |
|
|
|
|
२५४) आपण परिस्थितीला शरण
जाता कामा नये; परिस्थिती आपल्याला शरण गेली पाहिजे. |
|
|
२५५) अंहकार हा तपःसाधनेचा
महान शत्रू आहे. |
|
|
|
|
|
२५६) मोती होण्यासाठी
जलबिंदूला आकाशातून आपला अधःपात करून घ्यावा लागतो. |
|
|
२५७) नैतिक पाया ढासळला की
धार्मीकता संपलीच म्हणून समजा. |
|
|
|
२५८) अंतर्बाह्य
प्रांजळपणा हाच प्रीतीचा प्राण होय. |
|
|
|
|
|
२५९) सामर्थ्याच्या
पाठीमागे शील हवे. |
|
|
|
|
|
|
२६०) शहाणपणाचे प्रदर्शन
करणारा पोपट कायमचा बंदिवान होतो.
|
|
|
|
२६१) गवताची दोरी वळली
म्हणजे तिने मत्त हत्तीसुध्दा बांधला जातो. |
|
|
|
२६२) दुर्जन मंडळीत
बसण्यापेक्षा एकटे बसणे बरे आणि एकटे बसण्यापेक्षा सज्जन |
|
|
मंडळीत बसणे हे त्याहून बरे. |
|
|
|
|
|
|
२६३) पाप इतका सुंदर पोशाख
घालून येते की ते पाप आहे असे माहीत असूनही |
|
|
आपण त्याला कवटाळतो. |
|
|
|
|
|
|
२६४) पुढे मिळणाऱ्या
आनंदाच्या कल्पनेने जे सुख मिळते; त्या सुखाचे नाव उत्साह ! |
|
|
२६५) स्वातंत्र्याचे मंदिर
बलिदान करणाऱ्यांच्या रक्ताशिवाय उभे राहत नाही. |
|
|
|
२६६) अन्याय आणि अत्याचार
ह्याला सक्त विरोध हाच सत्याचा स्वभाव. |
|
|
|
२६७) चारित्र्याचा विकास
सुसंगतीत होतो तर बुध्दीचा विकास एकांतात होतो. |
|
|
|
२६८) स्वधर्माविषयी प्रेम,
परधर्माविषयी आदर आणि अधर्माविषयी उपेक्षा याचाच अर्थ धर्म. |
|
|
२६९) अन्याय करणे हे पाप
आणि होणारा अन्याय उघड्या डोळ्यांनी पाहणे हे महापाप ! |
|
|
२७०) क्रोध माणसाला पशू
बनवतो.
|
|
|
|
|
|
|
२७१) आपल्या दोषांवरचे
उपाय नेहमी आपल्याकडेच असतात; फक्त ते शोधण्याची |
|
|
तसदी घ्यावी लागते. |
|
|
|
|
|
|
|
२७२) आयुष्यात पैसा हवा पण
पैशात आयुष्य नको. |
|
|
|
|
|
२७३) जे नंतर चांगले
वाटते, तेच कृत्य नैतिक व जे नंतर दुःखकारक ठरते, ते अनैतिक ! |
|
|
२७४) कडू घोट प्रेमळ
माणसाच्या हातून दिल्यास तो कमी कडू लागतो. |
|
|
|
२७५) परमेश्वर ख्रऱ्या
भावनेलाच साहाय्य करतो. |
|
|
|
|
|
२७६) भरणाऱ्या जखमा भरू
द्याव्यात; त्याची खपली काढू नये. |
|
|
|
२७७) माणसाने माणसाशी
माणसासारखं वागणं हाच खरा धर्म. |
|
|
|
|
२७८) बोलावे की बोलू नये,
असा संभ्रम निर्माण झाला असता मौनाने बोलण्याची जागा घ्यावी. |
|
|
२७९) शत्रूने केलेले कौतुक
हीच आपली सर्वोत्तम कीर्ती होय. |
|
|
|
|
२८०) तिरस्कार पापाचा करा;
पापी माणसाचा नको.
|
|
|
|
|
|
२८१) आयुष्य जगण्यासाठी
नुसते विचार असुन चालत नाही; सुविचार असावे लागतात. |
|
|
२८२) जरूरीपेक्षा अधिक
गरजांचा हव्यास ठेवू नका. |
|
|
|
|
|
२८३) आपलं जे असतं ते आपलं
असतं आणि आपलं जे नसतं ते आपलं नसतं. |
|
|
२८४) जो धोका पत्करण्यास
कचरतो, तो लढाई काय जिंकणार ! |
|
|
|
२८५) लीनता आणि विनयशिलता
या धार्मिकतेच्या दोन शाखा आहेत. |
|
|
|
२८६) ह्रदये परस्परांना
द्यावीत, ती परस्परांच्या अधीन करू नयेत. |
|
|
|
२८७) कर्तव्य पार न पाडता
हक्कांच्या मागे धावलात तर ते दुर पळतात. |
|
|
|
२८८) हाव सोडली की मोह
संपतो आणि मोह संपाला की दुःख संपते. |
|
|
|
२८९) आपण कसे दिसतो
यापेक्षा कसे असतो याला अधिक महत्त्व आहे. |
|
|
|
२९०) गरूडाइतके उडता येत
नाही म्हणून चिमणी कधी उडण्याचे सोडत नाही.
|
|
|
|
२९१) आदर्श गृहिणी ही
शेकडो गुरूंहून श्रेष्ठ आहे. |
|
|
|
|
|
२९२) जो त्याग मनापासून
केलेला नसतो, तो टिकत नसतो. |
|
|
|
|
२९३) अहंकार विरहीत लहान
सेवाही मोठीच असते. |
|
|
|
|
|
२९४) तुम्हाला जर मित्र
हवे असतील तर आधी तुम्ही दुसऱ्याचे मित्र बना . |
|
|
|
२९५) न मागता देतो तोच खरा
दानी. |
|
|
|
|
|
|
२९६) चांगले काम करायचे
मनात आले की ते लगेच करून टाका. |
|
|
|
२९७) केवड्याला फळ येत
नाही पण त्याच्या सुगंधाने तो अवघ्या जगाला मोहवून टाकतो. |
|
|
२९८) समुद्रात कितीही मोठे
वादळ आले तरी समुद्र आपली शांतता कधीही सोडत नाही |
|
|
२९९) भितीयुक्त श्रीमंत
जीवन जगण्यापेक्षा शांततामय, मानाचे गरीब जीवन चांगले. |
|
|
३००) दुसऱ्याला सुख मिळत
असेल तर आपण थोडे दुःख सहन करायला काय हरकत आहे.
|
|
|
301) अतिथी देवो भव ॥ |
|
|
|
|
|
|
302) अपयशाने खचू नका; अधिक जिद्दी व्हा |
|
|
|
|
303)
अश्रू येणं हे माणसाला ह्रदय असल्याचं द्योतक आहे. |
|
|
304) अनुभवासारखा दुसरा गुरू नाही. |
|
|
|
|
|
305) अत्तर सुगंधी व्हायला फुले सुगंधी असावी
लागतात. |
|
|
|
306) अति आशा हे दुःखाचं मूळ कारण आहे. |
|
|
|
|
307)
अति तिथे माती. |
|
|
|
|
|
|
308) अंथरूण बघून पाय पसरा. |
|
|
|
|
|
309) अतिशहाणा त्याचा बैल रिकामा. |
|
|
|
|
|
310)
अश्रुंनीच ह्र्दये कळतात आणि जुळतात.
|
|
|
|
|
311) अन्याय बिनतक्रार सहन कराल तर नविन अन्यायांना
उत्तेजन दिल्यासारखे होईल. |
312)
अज्ञानाची फळे नश्वर असतात, ती सकाळी जन्मतात आणि संध्याकाळी नष्ट होतात. |
313) अहंकार आणि लोभ हे माणसाच्या दुःखाचे सर्वात मोठे कारण आहे. |
|
314) अहंकार हे अडानीपणाचे लक्षण आहे. |
|
|
|
|
315) आयुष्यात
भावनेपेक्षा कर्तव्य मोठे असते |
|
|
|
|
316) आपण जे पेरतो
तेच उगवतं |
|
|
|
|
|
317) आयुष्यातला
खरा आंनद भावनेच्या ओलाव्यात असतो. |
|
|
|
318) आयुष्यात असं
काहीतरी मिळवा जे तुमच्या पासून कुणीही चोरून घेऊ शकत नाही. |
319) आपण चुकतो
तिथे सावरतो तोच खरा मित्र |
|
|
|
|
320) आयुष्यात
भेटणारी सगळीच माणसे सारखी नसतात.
|
|
|
|
|
|
|
321)
आपला जन्म होतो तेव्हा आपण रडत असतो आणि लोक हसत असतात. मरताना |
आपण असं मरावं
की आपण हसत असू आणि लोक रडत असतील ! |
|
322) आधी विचार
करा; मग कृती करा. |
|
|
|
|
323) आयुष्यात
खूपदा बुध्दी जिंकते; ह्रदय हरतं पण बुध्दी जिंकूनही हरलेली असते |
आणि ह्रदय
हेरूनदेखील जिंकलेलं असतं. |
|
|
|
324) आपल्यामुळे
दुसऱ्याला दु:ख होईल असे कधीही वागू नका. |
|
325) आयुष्यात आई
आणि वडील यांना कधीच विसरु नका. |
|
|
|
|
|
326)
आयुष्य जगून समजते; केवळ ऎकून , वाचून , बघून समजत नाही. |
|
|
327) आपले सौख्य हे
आपल्या विचारांवर अवलंबून असते. |
|
|
|
328) आपल्यामुळे
दुसऱ्याला दु:ख होईल असे कधीही वागू नका. |
|
|
329) आयुष्याच्या
प्रवासात प्रवास अत्यावश्यक आहे. |
|
|
|
330) आपल्याला मदत
करणाऱ्या माणसांशी नेहमी कृतज्ञ रहा.
|
|
|
331) आवडतं तेच करू
नका; जे करावं लागतं त्यात आवड निर्माण करा. |
|
|
332) आयुष्यात
प्रेम करा ; पण प्रेमाचं प्रदर्शन करू नका. |
|
|
|
333) आयुष्यात
कुठलीच नाती ठरवून जोडता येत नाही. |
|
|
|
334) आयुष्यात
भेटणारी सगळीच माणसे सारखी नसतात. |
|
|
|
335) आनंदी मन,
सुदृढ शरीर आणि अध्यात्मिक श्रध्दा ह्या तिनही गोष्टी लाभणं |
|
म्हणजे अमृत
मिळणं. |
|
|
|
|
|
|
336) आधी विचार
करा, मग कृती करा. |
|
|
|
|
|
337) आयुष्यातल्या
कोणत्याही क्षणी क्रोधाचे गुलाम बनू नका. |
|
|
338) आयुष्यात
सर्वात जास्त विश्वास स्वतःवर ठेवा. |
|
|
|
339) आपल्याला जे
आवडतात त्यांच्यावर प्रेम करण्यापेक्षा ज्यानां आपण आवडतो |
|
त्यांच्यावर प्रेम
करा. |
|
|
|
340) आयुष्यात खरं प्रेम, खरी माया फार दुर्मिळ
असते.
|
|
|
|
|
|
|
341)
आयुष्यातील प्रत्येक घटनेपासून काहीतरी बोध घेण्यासारखा असतो. |
|
|
पण तशी मनोवृत्ति बाळगली पाहिजे. |
|
|
|
|
342) आपल्या कामात आनंद वाटने हे समृद्धीचे लक्षण
आहे. |
|
|
|
343) आपण किती गुणी आहोत यापेक्षा आपण किती दोषी
आहोत, |
|
|
हे पाहण्यातच मोठेपणा असते. |
|
|
|
|
|
344) आळस हा माणसाचा खरा शत्रु आहे. |
|
|
|
|
345) कसलीच लाज नसणे हीच एक लाजीरवाणी गोष्ट ! |
|
|
|
346) काही लोक यशाची फक्त स्वप्ने बघतात. इतर लोक
जागे होवून |
|
|
ती स्वप्ने पूर्ण होण्यासाठी धडपडतात. |
|
|
|
|
347) क्रांती हळूहळू घडते, एका क्षणात नाही. |
|
|
|
|
348) कविता म्हणजे भावनांचं चित्र! |
|
|
|
|
|
349) काळ्याकुट्ट रात्रीनंतर सुर्य उगवतोच. |
|
|
|
|
350) केवळ ज्ञान असून उपयोग नाही, ते कसं आणि
केव्हा |
|
|
|
वापरायचं
याचंही ज्ञान हवं.
351) Creativity is the key to success in the
future and education is where |
teachers can bring creativity in children at that level. |
|
|
- - Dr. A.P.J. Abdul Kalam.
352)
कधी कधी हक्क मागून मिळत नाहीत. ते मिळवावे लागतात. |
|
|
353) कुणीही चोरू
शकत नाही अशी संपत्ती कमावण्याचा प्रयत्न करा. |
|
|
354) कामात आनंद
निर्माण केला की त्याचं ओझं वाटत नाही. |
|
|
355) कधी कधी आपण
ज्यांच्यावर खूप प्रेम करतो तीच माणसं |
|
|
आपल्यापासून
फार दूर जातात. |
|
|
|
|
|
356) कुठल्याही
कामाला अंतःकरणाचा उमाळा लागतो. |
|
|
|
357) कलेशिवाय जीवन
म्हणजे सुगंधाशिवाय फूल आणि प्राणाशिवाय शरीर |
|
|
358) काळ्याकुट्ट
रात्रीनंतर उद्याची लख्ख पहाट असतेच. |
|
|
|
359) काळजाची
प्रत्येक जखम भरून येते कारण काळ दुःखावर मायेची फुंकर घालत असतो. |
360) केल्याने होत
आहे रे आधी केलेची पाहीजे. |
|
|
|
|
361) कधीही आशा
सोडु नका. आशा हा एक दोर आहे. जो तुम्हांस जीवनात झोके देत असतो. |
362) कुणाच्या
गुणांची प्रशंसा करण्यात अधिक वेळ दवडण्यापेक्षा त्यांच्यातले गुण |
|
आत्मसात
करण्याचा प्रयत्न करा. |
|
|
|
|
|
363) क्रोधाला लगाम
घालण्यासाठी मनाइतक उत्तम उपाय नाही. |
|
|
364) कालच्या
व्यर्थ विचारांना, मनोभावनांना, व कर्मांना पूर्णविराम द्या म्हणजे |
|
त्याचा
अंशमात्र उरणार नाही. |
|
|
|
|
|
365) क्रोधाच्या
सिंहासनावर बसताच बुद्धि तेथून निघुन जाते. |
|
|
|
366) क्रोध म्हणजे
मधमाशीच्या पोळ्यावर फेकलेले दगड. |
|
|
|
367) केलेली मदत
कधीही वाया जात नाही. |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
No comments:
Post a Comment